ओ अपरिपूर्णता की पुकार
ओ अपरिपूर्णता की पुकार! शत-शत गीतों में हो मुखरित, कर लक्ष-लक्ष उर में वितरित, कुछ हल्का तुम कर देती हो मेरे जीवन का व्यथा-भार! ओ अपरिपूर्णता की पुकार! जग ने क्या मेरी कथा सुनी, जग ने क्या मेरी व्यथा सुनी, मेरी अपूर्णता में आई जग की अपूर्णता रूप धार! ओ अपरिपूर्णता की पुकार! कर्मों की ध्वनियाँ आएँगी, निज बल पौरुष दिखलाएँगी, पर्याप्त, अखिल नभ मंड़ल में तुम गूँज उठी हो एक बार! ओ अपरिपूर्णता की पुकार

Read Next