आज गीत मैं अंक लगाए, भू मुझको, पर्यंक मुझे क्या
आज गीत मैं अंक लगाए, भू मुझको, पर्यंक मुझे क्या। खंडित-सा मैं घूम रहा था जग-पंथों पर भूला-भूला, तुमको पाकर पूर्ण हुआ मैं आज हृदय-मन फूला-फूला, फूलों की वह सेज कि जिसपर हम-तुम देखें स्वप्न सुनहले, आज गीत मैं अंक लगाए, भू मुझको, पर्यंक मुझे क्या। धन्य हुए वे तृण, कुश, कांटे जिनपर हमने प्यार बगेरे, यहाँ बिछा जाएँगे मोती प्रेयसे औ’ प्रियतम बहुतेरे, और गिरा जाएँगे आँसू विरही आकर चुपके-चुपके, मैं अंदर जाँचा करता हूँ, बाहर नरपति-रंक मुझे क्या। आज गीत मैं अंक लगाए, भू मुझको, पर्यंक मुझे क्या।

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