खिड़की से झाँक रहे तारे
खिड़की से झाँक रहे तारे! जलता है कोई दीप नहीं, कोई भी आज समीप नहीं, लेटा हूँ कमरे के अंदर बिस्तर पर अपना मन मारे! खिड़की से झाँक रहे तारे! सुख का ताना, दुख का बाना, सुधियों ने है बुनना ठाना, लो, कफ़न ओढाता आता है कोई मेरे तन पर सारे! खिड़की से झाँक रहे तारे! अपने पर मैं ही रोता हूँ, मैं अपनी चिता संजोता हूँ, जल जाऊँगा अपने कर से रख अपने ऊपर अंगारे! खिड़की से झाँक रहे तारे!

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