देश के नाविकों से
कुछ शक्ल तुम्हारी घबराई-घबराई-सी दिग्भ्रम की आँखों के अन्दर परछाईं सी, तुम चले कहाँ को और कहाँ पर पहुँच गए। लेकिन, नाविक, होता ही है तूफान प्रबल। यह नहीं किनारा है जो लक्ष्य तुम्हारा था, जिस पर तुमने अपना श्रम यौवन वारा था; यह भूमि नई, आकाश नया, नक्षत्र नए। हो सका तुम्हारा स्वप्न पुराना नहीं सफल। अब काम नहीं दे सकते हैं पिछले नक्शे, जिनको फिर-फिर तुम ताक रहे हो भ्रान्ति ग्रसे, तुम उन्हें फाड़ दो, और करो तैयार नये। वह आज नहीं संभव है, जो था संभव कल।

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