मैं जग से कुछ सीख न पाया
मैं जग से कुछ सीख न पाया। जग ने थोड़ा-थोड़ा चाहा, थोड़े में ही काम निबाहा, लेकिन अपनी इच्छाओं को मैंने सीमाहीन बनाया। मैं जग से कुछ सीख न पाया। जग ने जो दिन-बीच कमाया, उसे निशा में किया सवाया, मैंने जो दिन को जोड़ा था, उसको मैंने शाम गँवाया। मैं जग से कुछ सीख न पाया। जग ने जो प्रतिमा ठुकराई, झुककर उसके आगे आई, फिर-फिर झुका उसी वेदी पर जहाँ गया फिर-फिर ठुकराया। मैं जग से कुछ सीख न पाया।

Read Next