आज पागल हो गई है रात। हँस पड़ी विद्युच्छटा में, रो पड़ी रिमझिम घटा में, अभी भरती आह, करती अभी वज्रापात।...
सरलता से कुछ नहीं मुझको मिला है, जबकि चाहा है कि पानी एक चुल्लू पिऊँ, मुझको खोदना कूआँ पड़ा है....
है पावस की रात अँधेरी! विद्युति की है द्युति अम्बर में, जुगुनूँ की है ज्योति अधर में, नभ-मंड्ल की सकल दिशाएँ तम की चादर ने हैं घेरी!...
मैं जीवन की शंका महान! युग-युग संचालित राह छोड़, युग-युग संचित विश्वास तोड़! मैं चला आज युग-युग सेवित,...
अब समाप्त हो चुका मेरा काम। करना है बस आराम ही आराम। अब न खुरपी, न हँसिया, न पुरवट, न लढ़िया,...
काल छीनने दु:ख आता है जब दु:ख भी प्रिय हो जाता है नहीं चाहते जब हम दु:ख के बदले चिर सुख भी! साथी साथ ना देगा दु:ख भी!...
हम आँसू की धार बहाते! मानव के दुख का सागर जल हम पी लेते बनकर बादल, रोकर बरसाते हैं, फिर भी हम खारे को मधुर बनाते!...
जाड़ों के दिन थे,दोनों बच्चे अमित अजित सर्दी की छुट्टी में पहाड़ के कालेज से घर आये थे,जी में आया,सब मोटर से आगरे चलें,देखें शोभामय ताजमहल...
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो । मैं जगत के ताप से डरता नहीं अब, मैं समय के शाप से डरता नहीं अब, आज कुंतल छाँह मुझपर तुम किए हो...
जग बदलेगा, किंतु न जीवन! क्या न करेंगे उर में क्रंदन मरण-जन्म के प्रश्न चिरंतन, हल कर लेंगे जब रोटी का मसला जगती के नेतागण?...
मैं तो बहुत दिनों पर चेता । श्रम कर ऊबा श्रम कण डूबा सागर को खेना था मुझको रहा शिखर को खेता...
तुम गा दो, मेरे गान अमर हो जाए! मेरे वर्ण-वर्ण विश्रृंखल, चरण-चरण भरमाए, गूँज-गूँजकर मिटने वाले...
गुण तो नि:संशय देश तुम्हारे गाएगा, तुम-सा सदियों के बाद कहीं फिर पाएगा, पर जिन आदर्शों को तुम लेकर तुम जिए-मरे, कितना उनको...
मुझे न अपने से कुछ प्यार, मिट्टी का हूँ, छोटा दीपक, ज्योति चाहती, दुनिया जब तक, मेरी, जल-जल कर मैं उसको देने को तैयार| ...
उठ समय से मोरचा ले। जिस धरा से यत्न युग-युग कर उठे पूर्वज मनुज के, हो मनुज संतान तू उस-पर पड़ा है शर्म खाले।...
बाढ़ आ गई है, बाढ़! बाढ़ आ गई है, बाढ़! वह सब नीचे बैठ गया है जो था गरू-भरू,...
लहर सागर का नहीं श्रृंगार, उसकी विकलता है; अनिल अम्बर का नहीं खिलवार उसकी विकलता है;...
माना मैंने मिट्टी, कंकड़, पत्थर, पूजा, अपनी पूजा करने से तो मैं बाज़ रहा। दर्पन से अपनी चापलूसियाँ सुनने की सबको होती है, मुझको भी कमज़ोरी थी,...
एक दीप बाले तुम बैठीं, एक दीप बाले मैं बैठा। ज्योति ज्योति की ओर चला करती है त्रिभुवन के कोनों से, ऐसा क्या अँधियाला है जो...
आसरा मत ऊपर का देख, सहारा मत नीचे का माँग, यही क्या कम तुझको वरदान कि तेरे अंतस्तल में राग;...
वायु बहती शीत-निष्ठुर! ताप जीवन श्वास वाली, मृत्यु हिम उच्छवास वाली। क्या जला, जलकर बुझा, ठंढा हुआ फिर प्रकृति का उर!...
बीता इकतीस बरस जीवन! वे सब साथी ही हैं मेरे, जिनको गृह-गृहिणी-शिशु घेरे, जिनके उर में है शान्ति बसी, जिनका मुख है सुख का दर्पण!...
एक दिन मैंने मैन में शब्द को धँसाया था और एक गहरी पीड़ा, एक गहरे आनंद में,...
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल चांदी-सोने-हीरे-मोती से सजती गुडियाँ इनसे आतंकित करने की बीत गई घडियाँ इनसे सज धज बैठा करते जो हैं कठपुतले...
स्वप्न था मेरा भयंकर! रात का-सा था अंधेरा, बादलों का था न डेरा, किन्तु फिर भी चन्द्र-तारों से हुआ था हीन अम्बर!...
कवि तू जा व्यथा यह झेल। वेदना आई शरण में गीत ले गीले नयन में, क्या इसे निज द्वार से तू आज देगा ठेल।...
यह एक रश्मि-- पर छिपा हुआ है इसमें ही ऊषा बाला का अरुण रूप, दिन की सारी आभा अनूप,...
दोनों चित्र सामने मेरे। पहला सिर पर बाल घने, घंघराले, काले, कड़े, बड़े, बिखरे-से,...
विश्व सारा सो रहा है! हैं विचरते स्वप्न सुंदर, किंतु इसका संग तजकर, अगम नभ की शून्यता का कौन साथी हो रहा है?...
साथी, हमें अलग होना है! भार उठाते सब अपने बल, संवेदना प्रथा है केवल, अपने सुख-दुख के बोझे को सबको अलग-अलग ढोना है!...
बापू के हत्या के चालिस दिन बाद गया मैं दिल्ली को, देखने गया उस थल को भी जिस पर बापू जी गोली खाकर सोख गए, जो रँग उठा...
(१) कहानी है सृष्टि के प्रारम्भ की। पृथ्वी पर मनुष्य था, मनुष्य में हृदय था, हृदय में पूजा की भावना थी, पर देवता न थे। वह सूर्य को अर्ध्यदान देता था, अग्नि को हविष समर्प्ति कर्ता था, पर वह इतने से ही संतुष्ट न था। वह कुछ और चाहता था। उसने ऊपर की ओर हाथ उठाकर प्रार्थना की, ’हे स्वर्ग ! तूने हमारे लिए पृथ्वी पर सब सुविधाएँ दीं, पर तूने हमारे लिए कोई देवता नहीं दिया। तू देवताओं से भरा हुआ है, हमारे लिए एक देवता भेज दे जिसे हम अपनी भेंट चढा सकें, जो हमारी भेंट पाकर मुस्कुरा सके, जो हमारे हृदय की भावनाओं को समझ सके। हमें एक साक्षात देवता भेज दे।’ पृथ्वी के बाल-काल के मनुष्य की उस प्रार्थना में इतनी सरलता थी, इतनी सत्यता थी कि स्वर्ग पसीज उठा। आकाशवाणी हुई, ’जा मंदिर बना, शरद ॠतु की पूर्णिमा को जिस समय चंद्र बिंब क्षितिज के ऊपर उठेगा उसी समय मंदिर में देवता प्रकट होंगे। जा, मंदिर बना।’ मनुष्य का हृदय आनन्द से गद्गद हो उठा। उसने स्वर्ग को बारबार प्रणाम किया।...
मत मेरा संसार मुझे दो! जग की हँसी, घृणा, निर्ममता सह लेने की तो दो क्षमता, शांति भरी मुस्कानों वाला यदि न सुखद परिवार मुझे दो!...
राग उतर फिर-फिर जाता है, बीन चढ़ी ही रह जाती है| बीत गया युग एक तुम्हारे मंदिर की डयोढ़ी पर गाते, पर अंतर के तार बहुत-से,...
आज रोती रात, साथी! घन तिमिर में मुख छिपाकर है गिराती अश्रु झर-झर, क्या लगी कोई हृदय में तारकों की बात, साथी!...
यह दीपक है, यह परवाना। ज्वाल जगी है, उसके आगे जलनेवालों का जमघट है, भूल करे मत कोई कहकर,...
वेदना भगा, जो उर के अंदर आते ही सुरसा-सा बदन बढ़ाती है, सारी आशा-अभिलाषा को...
क्यों रोता है जड़ तकियों पर! जिनका उर था स्नेह विनिर्मित, भाव सरसता से अभिसिंचित, जब न पसीजे इनसे वे भी, आज पसीजेगें क्या पत्थर!...