बूढ़ा किसान
अब समाप्‍त हो चुका मेरा काम। करना है बस आराम ही आराम। अब न खुरपी, न हँसिया, न पुरवट, न लढ़िया, न रतरखाव, न हर, न हेंगा। मेरी मिट्टी में जो कुछ निहित था, उसे मैंने जोत-वो, अश्रु स्‍वेद-रक्‍त से सींच निकाला, काटा, खलिहान का ख्‍लिहाल पाटा, अब मौत क्‍या ले जाएगी मेरी मिट्टी से ठेंगा।

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