जग बदलेगा, किन्तु न जीवन
जग बदलेगा, किंतु न जीवन! क्या न करेंगे उर में क्रंदन मरण-जन्म के प्रश्न चिरंतन, हल कर लेंगे जब रोटी का मसला जगती के नेतागण? जग बदलेगा, किंतु न जीवन! प्रणय-स्वप्न की चंचलता पर जो रोएँगे सिर धुन-धुनकर, नेताओं के तर्क वचन क्या उनको दे देंगे आश्वासन? जग बदलेगा, किंतु न जीवन! मानव-भाग्य-पटल पर अंकित न्याय नियति का जो चिर निश्चित, धो पाएँगें उसे तनिक भी नेताओं के आँसू के कण? जग बदलेगा, किंतु न जीवन!

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