साथी साथ ना देगा दुख भी
काल छीनने दु:ख आता है जब दु:ख भी प्रिय हो जाता है नहीं चाहते जब हम दु:ख के बदले चिर सुख भी! साथी साथ ना देगा दु:ख भी! जब परवशता का कर अनुभव अश्रु बहाना पडता नीरव उसी विवशता से दुनिया में होना पडता है हंसमुख भी! साथी साथ ना देगा दु:ख भी! इसे कहूं कर्तव्य-सुघरता या विरक्ति, या केवल जडता भिन्न सुखों से, भिन्न दुखों से, होता है जीवन का रुख भी! साथी साथ ना देगा दु:ख भी!

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