स्वप्न था मेरा भयंकर
स्वप्न था मेरा भयंकर! रात का-सा था अंधेरा, बादलों का था न डेरा, किन्तु फिर भी चन्द्र-तारों से हुआ था हीन अम्बर! स्वप्न था मेरा भयंकर! क्षीण सरिता बह रही थी, कूल से यह कह रही थी- शीघ्र ही मैं सूखने को, भेंट ले मुझको हृदय भर! स्वप्न था मेरा भयंकर! धार से कुछ फासले पर सिर कफ़न की ओढ चादर एक मुर्दा गा रहा था बैठकर जलती चिता पर! स्वप्न था मेरा भयंकर!

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