आज तुम मेरे लिये हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो । मैं जगत के ताप से डरता नहीं अब, मैं समय के शाप से डरता नहीं अब, आज कुंतल छाँह मुझपर तुम किए हो प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो । रात मेरी, रात का श्रृंगार मेरा, आज आधे विश्व से अभिसार मेरा, तुम मुझे अधिकार अधरों पर दिए हो प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो। वह सुरा के रूप से मोहे भला क्या, वह सुधा के स्वाद से जा‌ए छला क्या, जो तुम्हारे होंठ का मधु-विष पिए हो प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो। मृत-सजीवन था तुम्हारा तो परस ही, पा गया मैं बाहु का बंधन सरस भी, मैं अमर अब, मत कहो केवल जिए हो प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।

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