बापू के हत्‍या के चालिस दिन बाद गया
बापू के हत्‍या के चालिस दिन बाद गया मैं दिल्‍ली को, देखने गया उस थल को भी जिस पर बापू जी गोली खाकर सोख गए, जो रँग उठा उनके लोहू की लाली से। बिरला-घर के बाएँ को है है वह लॉन हरा, प्रार्थना सभा जिस पर बापू की होती थी, थी एक ओर छोटी सी वेदिका बनी, जिस पर थे गहरे लाल रंग के फूल चढ़े। उस हरे लॉन के बीच देख उन फूलों को ऐसा लगता था जैसे बापू का लोहू अब भी पृथ्‍वी के ऊपर ताज़ा ताज़ा है! सुन पड़े धड़ाके तीन मुझे फिर गोली के काँपने लगे पाँवों के नीचे की धरती, फिर पीड़ा के स्‍वर में फूटा 'हे राम' शब्‍द, चीरता हुआ विद्युत सा नभ के स्‍तर पर स्‍तर कर ध्‍वनित-प्रतिध्‍वनित दिक्-दिगंत बार-बार मेरे अंतर में पैठ मुझे सालने लगा!......

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