दैत्‍य की देन
सरलता से कुछ नहीं मुझको मिला है, जबकि चाहा है कि पानी एक चुल्लू पिऊँ, मुझको खोदना कूआँ पड़ा है. एक कलिका जो उँगलियों में पकड़ने को मुझे वन एक पूरा कंटकों का काटकर के पार करना पड़ा है औ'मधुर मधु के स्वल्प कण का स्वाद लेने के लिए मैं तरबतर आँसू,पसीने,खून से हो गया हूँ; उपलब्धियाँ जो कीं, चुकाया मूल्य जो उनका; नहीं अनुपात उनमें कुछ; मगर सौभाग्य इसमें भी बड़ा है. जहाँ मुझमें स्वप्नदर्शी देवता था वहीं एक अदम्य कर्मठ दैत्य भी था जो कि उसके स्वप्न को साकार करने के लिए तन-प्राण की बाज़ी लगाता रहा, चाहे प्राप्ति खंडित रेख हो, या शून्य ही हो. और मैं यह कभी दावा नहीं करता सर्वदा शुभ,शुभ्र,निर्मल दृष्टि में रखता रहा हूँ-- देवता भी साल में छ: मास सोते-- अशुभ,कलुषित,पतित,कुत्सित की तरफ़ कम नहीं आकर्षित हुआ हूँ-- प्राप्ति में सम-क्लिष्ट-- किंतु मेरे दैत्य की विराट श्रम की साधना ने, लक्ष्य कुछ हो,कहीं पर, हर पंथ मेरा तीर्थ-यात्रा-सा किया है-- रक्त-रंजित,स्वेद-सिंचित, अश्रु-धारा-धौत. मंज़िल जानती है, न तो नीचे ग्लानि से मेरे नयन हैं, न ही फूला हर्ष से मेरा हिया है.

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