आज पागल हो गई है रात
आज पागल हो गई है रात। हँस पड़ी विद्युच्छटा में, रो पड़ी रिमझिम घटा में, अभी भरती आह, करती अभी वज्रापात। आज पागल हो गई है रात। एक दिन मैं भी हँसा था, अश्रु-धारा में फँसा था, आह उर में थी भरी, था क्रोध-कंपित गात। आज पागल हो गई है रात। योग्य हँसने के यहाँ क्या, योग्य रोने के यहाँ क्या, --क्रुद्ध होने के, यहाँ क्या, --बुद्धि खोने के, यहाँ क्या, व्यर्थ दोनों हैं मुझे हँस-रो हुआ यह ज्ञात। आज पागल हो गई है रात।

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