गुण तो नि:संशय देश तुम्‍हारे गाएगा
गुण तो नि:संशय देश तुम्‍हारे गाएगा, तुम-सा सदियों के बाद कहीं फिर पाएगा, पर जिन आदर्शों को तुम लेकर तुम जिए-मरे, कितना उनको कल का भारत अपनाएगा? बाएँ था सागर औ' दाएँ था दावानल, तुम चले बीच दोनों के, साधक, सम्‍हल-सम्‍हल, तुम खड्गधार-सा पंथ प्रेम का छोड़ गए, लेकिन उस पर पाँवों को कौन बढ़ाएगा? जो पहन चुनौती पशुता को दी थी तुमने, जो पहन दनुज से कुश्‍ती ली थी तुमने, तुम मानवता का महाकवच तो छोड़ गए, लेकिन उसके बोझे को कौन उठाएगा? शासन-सम्राट डरे जिसकी टंकारों से, घबराई फ़‍िरकेवारी जिसके वारों से, तुम सत्‍य-अहिंसा का अजगव तो छोड़ गए, लेकिन उस पर प्रत्‍यंचा कौन चढ़एगा?

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