मुझे पुकारती हुई पुकार खो गई कहीँ... प्रलम्बिता अंगार रेख-सा खिंचा अपार चर्म वक्ष प्राण का...
मुझको डर लगता है, मैं भी तो सफलता के चंद्र की छाया मे घुग्घू या सियार या भूत नहीं कहीं बन जाऊँ।...
कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं – 'सफल जीवन बिताने में हुए असमर्थ तुम! तरक़्क़ी के गोल-गोल घुमावदार चक्करदार...
नगर के बीचों-बीच आधी रात--अंधेरे की काली स्याह शिलाओं से बनी हुई भीतों और अहातों के, काँच-टुकड़े जमे हुए...
स्तब्ध हूँ विचित्र दृश्य फुसफुसे पहाड़ों-सी पुरुषों की आकृतियाँ भुसभुसे टीलों-सी नारी प्रकृतियाँ...
मुझे जेल देती हैं दुश्मन हैं स्फूर्तियाँ गुस्से में ढकेल ही देती हैं। भयानक समुन्दर के बीचोंबीच फेंक दिया जाता हूँ।...
सागर तट पथरीला किसी अन्य ग्रह-तल के विलक्षण स्थानों को अपार्थिव आकृति-सा इस मिनिट, उस सेकेण्ड...
कोई स्वर ऊँचा उठता हुआ बींधता चला गया । उस स्वर को चमचमाती-सी एक तेज़ नोक जिसने मेरे भीतर की चट्टानी ज़मीन अपनी विद्युत से यों खो दी, इतनी रन्ध्रिल कर दी कि अरे...
ईमानदार संस्कार-मयी सन्तुलित नयी गहरी चेतना अभय होकर अपने वास्तविक मूलगामी निष्कर्षों तक पहुँची...
उनके आलोक-वलय में जग मैंने देखा — जन-जन के संघर्षों में विकसित परिणत होते नूतन मन का । वह अन्तस्तल . . . . . ....
दावाग्नि-लगे, जंगल के बीचों-बीच बहे मानो जीवन सरिता जलते कूलोंवाली, इस कष्ट भरे जीवन के विस्तारों में त्यों...
अपने समुंदरों के विभोर मस्ती के शब्दों में गम्भीर तब मेरा हिन्दुस्तान हँसा । जन-संघर्षों की राहों पर...
जीवन के प्रखर समर्थक-से जब प्रश्न चिन्ह बौखला उठे थे दुर्निवार, तब एक समंदर के भीतर रवि की उद्भासित छवियों का...
भीतर जो शून्य है उसका एक जबड़ा है जबड़े में माँस काट खाने के दाँत हैं ; उनको खा जायेंगे,...
इतने प्राण, इतने हाथ, इनती बुद्धि इतना ज्ञान, संस्कृति और अंतःशुद्धि इतना दिव्य, इतना भव्य, इतनी शक्ति यह सौंदर्य, वह वैचित्र्य, ईश्वर-भक्ति...
मैं उनका ही होता जिनसे मैंने रूप भाव पाए हैं। वे मेरे ही हिये बंधे हैं जो मर्यादाएँ लाए हैं।...
मैं बहुत दिनों से बहुत दिनों से बहुत-बहुत सी बातें तुमसे चाह रहा था कहना और कि साथ यों साथ-साथ फिर बहना बहना बहना...
भूल-ग़लती आज बैठी है ज़िरहबख्तर पहनकर तख्त पर दिल के, चमकते हैं खड़े हथियार उसके दूर तक, ...
जब दुपहरी ज़िन्दगी पर रोज़ सूरज एक जॉबर-सा बराबर रौब अपना गाँठता-सा है कि रोज़ी छूटने का डर हमें ...
रात, चलते हैं अकेले ही सितारे। एक निर्जन रिक्त नाले के पास मैंने एक स्थल को खोद मिट्टी के हरे ढेले निकाले दूर...
मेरे जीवन की धर्म तुम्ही-- यद्यपि पालन में रही चूक हे मर्म-स्पर्शिनी आत्मीये! मैदान-धूप में--...
मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँ तुम्हारी प्रेरणाओं से मेरी प्रेरणा इतनी भिन्न है कि जो तुम्हारे लिए विष है, मेरे लिए अन्न है। मेरी असंग स्थिति में चलता-फिरता साथ है, ...
ज़िन्दगी में जो कुछ है, जो भी है सहर्ष स्वीकारा है; इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है। ...
मुझे नहीं मालूम मेरी प्रतिक्रियाएँ सही हैं या ग़लत हैं या और कुछ सच, हूँ मात्र मैं निवेदन-सौन्दर्य...
घोर धनुर्धर, बाण तुम्हारा सब प्राणों को पार करेगा, तेरी प्रत्यंचा का कंपन सूनेपन का भार हरेगा हिमवत, जड़, निःस्पंद हृदय के अंधकार में जीवन-भय है तेरे तीक्ष्ण बाणों की नोकों पर जीवन-संचार करेगा ।...
घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, निस्तब्ध वनंतर व्यापक अंधकार में सिकुड़ी सोयी नर की बस्ती भयकर है निस्तब्ध गगन, रोती-सी सरिता-धार चली गहराती, जीवन-लीला को समाप्त कर मरण-सेज पर है कोई नर...