नाश देवता
घोर धनुर्धर, बाण तुम्हारा सब प्राणों को पार करेगा, तेरी प्रत्यंचा का कंपन सूनेपन का भार हरेगा हिमवत, जड़, निःस्पंद हृदय के अंधकार में जीवन-भय है तेरे तीक्ष्ण बाणों की नोकों पर जीवन-संचार करेगा । तेरे क्रुद्ध वचन बाणों की गति से अंतर में उतरेंगे, तेरे क्षुब्ध हृदय के शोले उर की पीड़ा में ठहरेंगे कोपुत तेरा अधर-संस्फुरण उर में होगा जीवन-वेदन रुष्ट दृगों की चमक बनेगी आत्म-ज्योति की किरण सचेतन । सभी उरों के अंधकार में एक तड़ित वेदना उठेगी, तभी सृजन की बीज-वृद्धि हित जड़ावरण की महि फटेगी शत-शत बाणों से घायल हो बढ़ा चलेगा जीवन-अंकुर दंशन की चेतन किरणों के द्वारा काली अमा हटेगी । हे रहस्यमय, ध्वंस-महाप्रभु, जो जीवन के तेज सनातन, तेरे अग्निकणों से जीवन, तीक्ष्ण बाण से नूतन सृजन हम घुटने पर, नाश-देवता ! बैठ तुझे करते हैं वंदन मेरे सर पर एक पैर रख नाप तीन जग तू असीम बन ।

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