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कभी कभी शब्दों की तरफ़ से भी दुनिया को देखता हूँ। किसी भी शब्द को एक आतशी शीशे की तरह...

प्लास्टिक के पेड़ नाइलॉन के फूल रबर की चिड़ियाँ टेप पर भूले बिसरे...

एक हरा जंगल धमनियों में जलता है। तुम्हारे आँचल में आग... चाहता हूँ झपटकर अलग कर दूँ तुम्हें उन तमाम संदर्भों से जिनमें तुम बेचैन हो...

प्रियजन मैं बहुत जल्दी में लिख रहा हूं क्योंकि मैं बहुत जल्दी में हूं लिखने की जिसे आप भी अगर...

उदासी भी एक पक्का रंग है जीवन का उदासी के भी तमाम रंग होते हैं जैसे...

मेले से लाया हूँ इसको छोटी सी प्‍यारी गुड़िया, बेच रही थी इसे भीड़ में बैठी नुक्‍कड़ पर बुढ़िया...

गले तक धरती में गड़े हुए भी सोच रहा हूँ कि बँधे हों हाथ और पाँव तो आकाश हो जाती है उड़ने की ताक़त...

एक बार खबर उड़ी कि कविता अब कविता नहीं रही और यूं फैली कि कविता अब नहीं रही!...

तुम अभी आग ही आग मैं बुझता चिराग   हवा से भी अधिक अस्थिर हाथों से...

एक बार मुझे आँकड़ों की उल्टियाँ होने लगीं गिनते गिनते जब संख्या करोड़ों को पार करने लगी मैं बेहोश हो गया ...

दीवार पर टंगी घड़ी कहती − "उठो अब वक़्त आ गया।" कोने में खड़ी छड़ी कहती − "चलो अब, बहुत दूर जाना है।"...

ये पंक्तियाँ मेरे निकट आईं नहीं मैं ही गया उनके निकट उनको मनाने, ढीठ, उच्छृंखल अबाध्य इकाइयों को...

यह जगह वही है जहां कभी मैंने जन्म लिया होगा इस जन्म से पहले यह मौसम वही है...

नई नई किताबें पहले तो दूर से देखती हैं मुझे शरमाती हुईं फिर संकोच छोड़ कर ...

कई दर्द थे जीवन में : एक दर्द और सही, मैंने सोचा -- इतना भी बे-दर्द होकर क्या जीना ! अपना लिया उसे भी...

व्यक्ति को विकार की ही तरह पढ़ना जीवन का अशुद्ध पाठ है। वह एक नाज़ुक स्पन्द है ...

मैं इस्‍तीफा देता हूं व्‍यापार से परिवार से सरकार से...

आश्चर्य ! वह स्त्री और बच्चा भी अकेले खड़े हैं उधर। क्या मैं कुछ कर सकता हूँ उनके लिए ? स्त्री मुझे निरीह आँखों से देखती है -...

कुछ लोग मुझे लेने आये हैं। मैं उन्हें नहीं जानता : जैसे कुछ लोग मुझे छोड़ने आये थे जिन्हें मैं जानता था।...

धीमी पड़ती चाल। अगले ठहराव पर उतर जाना है मुझे। एक सिहरन-सी दौड़ जाती नसों में।...

यहाँ और वहाँ के बीच कहीं किसी उजाड़ जगह अनिश्चित काल के लिए खड़ी हो गई है ट्रेन।...

बाहर किसी घसीट लिखावट में लिखे गए परिचित यात्रा-वृत्तान्त के फरकराते दृश्यों को बिना पढ़े पन्नों पर पन्ने उलटती चली जाती रफ़्तार :...

नींद खुल गई थी शायद किसी बच्चे के रोने से या किसी माँ के परेशान होने से या किसी के अपनी जगह से उठने से...

शायद उसी वक़्त मैंने गिरते देका था ट्रेन से दो पांवों की और चौंक कर उठ बैठा था । पैताने दो पांव-...

शायद मैं ऊँघ कर लुढ़क गया था एक स्वप्न में - एक प्राचीन शिलालेख के अधमिटे अक्षर पढ़ते हुए चकित हूँ कि इतना सब समय...

क्यों किसी की सन्दूक का कोना अचानक मेरी पिण्डली में गड़ने लगा ? क्यों मेरे सिर के ठीक ऊपर टिका गिरने-गिरने को वह बिस्तर अखरने लगा ?...

कोई किसी को लेने आया है। कुछ और आवाज़ें। कोई किसी को छोड़ने आया है। किसी का कुछ छूट गया है।...

हमें कृतज्ञ करता दूसरों के साथ होने मात्र के प्रति, किसी का सीट बराबर जगह दे देना भी हमें विश्वास दिलाता कि दुनिया बहुत बड़ी है, ...

घटनाचक्र की तरह घूमते पहिये : वह भी एक नाटकीय प्रवेश होता है चलती ट्रेन पकड़ने वक़्त, जब एक पाँव छूटती ट्रेन पर और दूसरा...

एक गहरे विवाद में फँस गया है मेरा कर्तव्य-बोध: ट्रेन ही नहीं एक रॉकेट भी पकड़ना है मुझे अन्तरिक्ष के लिए...

मुझे एक यात्रा पर जाना है मुझे काम पर जाना है मुझे कहाँ जाना है दशरथ की पत्नियों के प्रपंच से बच कर ?...

सफ़र से पहले अकसर रेल-सी लम्बी एक सरसराहट मेरी रीढ़ पर रेंग जाया करती है। याद आने लगते कुछ बढ़ते फ़ासले-...

रात मीठी चांदनी है, मौन की चादर तनी है, एक चेहरा ? या कटोरा सोम मेरे हाथ में दो नयन ? या नखतवाले व्‍योम मेरे हाथ में?...

वहाँ वह भी था जैसे किसी सच्चे और सुहृद शब्द की हिम्मतों में बँधी हुई एक ठीक कोशिश....... ...

फूलों पर पड़े-पड़े अकसर मैंने ओस के बारे में सोचा है – किरणों की नोकों से ठहराकर ज्योति-बिन्दु फूलों पर ...

मैंने कई भाषाओँ में प्यार किया है पहला प्यार ममत्व की तुतलाती मातृभाषा में... कुछ ही वर्ष रही वह जीवन में:...

ओ मस्तक विराट, अभी नहीं मुकुट और अलंकार। अभी नहीं तिलक और राज्यभार। तेजस्वी चिन्तित ललाट। दो मुझको...

कार्तिक की हँसमुख सुबह। नदी-तट से लौटती गंगा नहा कर सुवासित भीगी हवाएँ सदा पावन...

क्या फिर वही होगा जिसका हमें डर है ? क्या वह नहीं होगा जिसकी हमें आशा थी?...

मैं ज़िंदगी से भागना नहीं उससे जुड़ना चाहता हूँ। - उसे झकझोरना चाहता हूँ उसके काल्पनिक अक्ष पर ...