जन्म-कुंडली
फूलों पर पड़े-पड़े अकसर मैंने ओस के बारे में सोचा है – किरणों की नोकों से ठहराकर ज्योति-बिन्दु फूलों पर किस ज्योतिर्विद ने इस जगमग खगोल की जटिल जन्म-कुंडली बनायी है ? फिर क्यों निःश्लेष किया अलंकरण पर भर में ? एक से शून्य तक किसकी यह ज्यामितिक सनकी जमुहाई है ? और फिर उनको भी सोचा है – वृक्षों के तले पड़े फटे-चिटे पत्ते----- उनकी अंकगणित में कैसी यह उधेडबुन ? हवा कुछ गिनती हैः गिरे हुए पत्तों को कहीं से उठाती और कहीं पर रखती है । कभी कुछ पत्तों को डालों से तोड़कर यों ही फेंक देती है मरोड़कर ...। कभी-कभी फैलाकर नया पृष्ठ – अंतरिक्ष- गोदती चली जाती...वृक्ष...वृक्ष...वृक्ष

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