ये पंक्तियाँ मेरे निकट
ये पंक्तियाँ मेरे निकट आईं नहीं मैं ही गया उनके निकट उनको मनाने, ढीठ, उच्छृंखल अबाध्य इकाइयों को पास लाने : कुछ दूर उड़ते बादलों की बेसंवारी रेख, या खोते, निकलते, डूबते, तिरते गगन में पक्षियों की पांत लहराती : अमा से छलछलाती रूप-मदिरा देख सरिता की सतह पर नाचती लहरें, बिखरे फूल अल्हड़ वनश्री गाती... ... कभी भी पास मेरे नहीं आए : मैं गया उनके निकट उनको बुलाने, गैर को अपना बनाने : क्योंकि मुझमें पिण्डवासी है कहीं कोई अकेली-सी उदासी जो कि ऐहिक सिलसिलों से कुछ संबंध रखती उन परायी पंक्तियों से ! और जिस की गांठ भर मैं बांधता हूं किसी विधि से विविध छंदों के कलावों से।

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