जल्दी में
प्रियजन मैं बहुत जल्दी में लिख रहा हूं क्योंकि मैं बहुत जल्दी में हूं लिखने की जिसे आप भी अगर समझने की उतनी ही बड़ी जल्दी में नहीं हैं तो जल्दी समझ नहीं पायेंगे कि मैं क्यों जल्दी में हूं। जल्दी का जमाना है सब जल्दी में हैं कोई कहीं पहुंचने की जल्दी में तो कोई कहीं लौटने की … हर बड़ी जल्दी को और बड़ी जल्दी में बदलने की लाखों जल्दबाज मशीनों का हम रोज आविष्कार कर रहे हैं ताकि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती हुई हमारी जल्दियां हमें जल्दी से जल्दी किसी ऐसी जगह पर पहुंचा दें जहां हम हर घड़ी जल्दी से जल्दी पहुंचने की जल्दी में हैं। मगर….कहां ? यह सवाल हमें चौंकाता है यह अचानक सवाल इस जल्दी के जमाने में हमें पुराने जमाने की याद दिलाता है। किसी जल्दबाज आदमी की सोचिए जब वह बहुत तेजी से चला जा रहा हो -एक व्यापार की तरह- उसे बीच में ही रोक कर पूछिए,             ‘क्या होगा अगर तुम            रोक दिये गये इसी तरह             बीच ही में एक दिन             अचानक….?’   वह रुकना नहीं चाहेगा इस अचानक बाधा पर उसकी झुंझलाहट आपको चकित कर देगी। उसे जब भी धैर्य से सोचने पर बाध्य किया जायेगा वह अधैर्य से बड़बड़ायेगा। ‘अचानक’ को ‘जल्दी’ का दुश्मान मान रोके जाने से घबड़ायेगा। यद्यपि आपको आश्चर्य होगा कि इस तरह रोके जाने के खिलाफ उसके पास कोई तैयारी नहीं….

Read Next