कभी पाना मुझे
तुम अभी आग ही आग मैं बुझता चिराग   हवा से भी अधिक अस्थिर हाथों से पकड़ता एक किरण का स्पन्द पानी पर लिखता एक छंद बनाता एक आभा-चित्र और डूब जाता अतल में एक सीपी में बंद कभी पाना मुझे सदियों बाद दो गोलाद्धों के बीच झूमते एक मोती में ।

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