एक यात्रा के दौरान / बारह
यहाँ और वहाँ के बीच कहीं किसी उजाड़ जगह अनिश्चित काल के लिए खड़ी हो गई है ट्रेन। दूर तक फैली ऊबड़खाबड़ पहाड़ियाँ, जगह जगह टेसू और बबूल की झाड़ियाँ, काँस औऱ जँगली घास के झाड़झंखाड़, जहाँ तहाँ बरसाती पानी के तलाब ..... वह सब जो चल रहा था अचानक अकारण अमय कहीं रुक गया है आशंका और उतावली के किसी असह्य बिन्दु पर। कुछ हुआ है जो नहीं होना चाहिए था जो अकसर होता रहता है जीवन में। कौन थे वे जो होकर भी नहीं होते ? ऐसा क्यों हुआ ? वैसा क्यों नहीं हुआ जैसा होना चाहिए था ? सवालों के एक उफान के बाद अलग अलग अनुमानों में निथर कर बैठ गई हैं उत्सुकताएँ। फिर चल पड़ती है ट्रेन एक धक्के से घसीटती हुई अपने साथ उस शेष को भी जो घटित होगा कुछ समय बाद कहीं और किसी अन्य यहाँ और वहाँ के बीच

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