दूसरी तरफ़ उसकी उपस्थिति
वहाँ वह भी था जैसे किसी सच्चे और सुहृद शब्द की हिम्मतों में बँधी हुई एक ठीक कोशिश....... जब भी परिचित संदर्भों से कट कर वह अलग जा पड़ता तब वही नहीं वह सब भी सूना हो जाता जिनमें वह नहीं होता । उसकी अनुपस्थिति से कहीं कोई फ़र्क न पड़ता किसी भी माने में, लेकिन किसी तरफ़ उसकी उपस्थिति मात्र से एक संतुलन बन जाता उधर जिधर पंक्तियाँ होती, चाहे वह नहीं ।

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