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जल रहा है जवान हो कर गुलाब, खोल कर होंठ : जैसे आग...

न हटा बीच में खड़ा समय न मिले हम और तुम समय से बाहर...

खिड़की बंद, किंवाड़े बंद, मेरे कोठे में कोठे की आत्मा बंद। बाहर दुनिया खुली-खुली,...

सूरज गया, रात ने अपने पंख पसारे, निकल पड़े भीतर से बाहर नभ में तारे,...

शब्द हो गए हैं नंगे अर्थ नहीं खुलते अनर्थ अश्लीलता घंटी बजाती है...

तुम आ गई हो मेरे अस्तित्व में अपने अस्तित्व से निकल कर भरपूर बढ़ रहे अपने व्यक्तित्व के साथ जहाँ व्याप्त हूँ मैं...

मुझे प्राप्त है जनता का बल वह बल मेरी कविता का बल मैं उस बल से शक्ति प्रबल से...

आओ न, गले मिलने; फूल आए कनेर के तले सघन छाँह में...

हल चलते हैं फिर खेतों में फटती है फिर काली मिट्टी बोते हैं फिर बिया किसान कल के जीवन के वरदान;...

न बुलाओ तुम मुझे इस समय अपने पास खोदनी है अभी मुझे आसपास उग आई बेकार विचारों की घास, तोड़ने हैं मुझे अभी...

कैसे जिएँ कठिन है चक्कर निर्बल हम बलीन है मक्कर तिलझन ताबड़तोड़ कटाकट हड्डी की लोहे से टक्कर।...

भेड़िये-सा भंयकर हो गया है यथार्थ न कोई बचाव...

चिलम में उगा नशे का पेड़ जड़ में आग सिर में धुआँ...

गेहूँ में गेरुआ लगा, घोंघी ने खा लिया चना, बिल्कुल बिगड़ा, खेल बना। अब आफत से काम पड़ा,...

चला भी न चला वह समय के साथ, जहाँ सब चलते हैं जमीन में जीने के लिए,...

लंगड़े की दुनिया भी लंगड़ी है ज़िन्दगी एक...

लिपट गयी जो धूल लिपट गयी जो धूल पांव से वह गोरी है इसी गांव की जिसे उठाया नहीं किसी ने ...

देता भी तो क्या देता मैं तुमको प्यार-प्यार ही तो मैं देता तुमको वही दिया है-...

हम जिएँ न जिएँ दोस्त तुम जियो एक नौजवान की तरह, खेत में झूम रहे धान की तरह, मौत को मार रहे वान की तरह।...

अतीत की संतान है वर्तमान भविष्य का पिता है वर्तमान...

एक और दिन उड़ गया कबूतरी गुटरगूं का। एक और शाम ढल गई गुलाब पंखुरियों की।...

सिर के अन्दर शहर पिट गया है पेट के अन्दर पुरूष पिट गया है...

बिगड़े हैं लोग और बिगड़ा है आचरण रोके नहीं रुकता अपराधों का प्रजनन...

आश्चर्य है कि वह है-- ढहा नहीं; सत्य की समाधि पर अब भी...

उसे घमंड है कि वह नेक औरत है मुझे अफ़सोस है उसकी इस नेक नादानी पर।...

मैं हूँ आग और बर्फ़ की वसीयत मौत जिसे पाएगी जीवन से लिखी।...

समाप्त हो गया नीले आसमान का खूनी व्याख्यान दबोच लिया...

हम गा रहे हैं उनकी मौत का गाना जिन्हें आता है अब इंसान को हैवान बनाना...

राजनीति नंगी औरत है कई साल से जो यूरुप में आलिंगन के अंधे भूखे कई शक्तिशाली गुंडों को...

वह पठार जो जड़ बीहड़ था कटते-कटते ध्वस्त हो गया, धूल हो गया, सिंचते-सिंचते, ...

कल जब नई पीढ़ी तुम्हें भोगते-भोगते- जाँबाज...

आवरण के भीतर है एक आवरण और भीतर के भीतर है एक आवरण और भीतर के भीतर के भीतर है एक आवरण और...

सूरदास ने कभी कहा था नारी को शृंगार भाव से, ‘अद्भुत एक अनूपम बाग’। युग बदला,...

सब हैं व्यस्त संकट-ग्रस्त सब तरह से पीड़ित त्रस्त फुरसत किसे है अब कहाँ...

बजते उन्हीं के अब नगाड़े हैं पढ़ते जो मरण के पहाड़े हैं अशरण के शरण के अखाड़े हैं संकट को मार-मार माँड़े हैं...

तुम भी कुछ हो लेकिन जो हो, वह कलियों में रूप-गन्ध की लगी गांठ है...

मेरे ही प्रतिरूप पेड़ पर उड़कर आई, बैठी, चंचल दृग नेहातुर चिड़िया-...

हम बाण मारते हैं न साँप मरता है- न शैतान। हम हो गए...

तुम मिलती हो हरे पेड़ को जैसे मिलती धूप, आँचल खोले, सहज...

साक्षी है फटी कमीज कि वह भी...