बजते उन्हीं के नगाड़े हैं
बजते उन्हीं के अब नगाड़े हैं पढ़ते जो मरण के पहाड़े हैं अशरण के शरण के अखाड़े हैं संकट को मार-मार माँड़े हैं केतु वही कीरत का गाड़े हैं।

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