तुम भी कुछ हो
तुम भी कुछ हो लेकिन जो हो, वह कलियों में रूप-गन्ध की लगी गांठ है जिसे उजाला धीरे धीरे खोल रहा है। यह जो नग दिये के नीचे चुप बैठा है, इसने मुझको काट लिया है, इस काटे का मंत्र तुम्हारे चुंबन में है, तुम चुंबन से मुझे जिला दो।

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