मेरे ही प्रतिरूप पेड़ पर
मेरे ही प्रतिरूप पेड़ पर उड़कर आई, बैठी, चंचल दृग नेहातुर चिड़िया- बया नाम की- सस्वर बोली अपने मुँह से मेरी कविता मुग्ध पत्तियाँ झूमीं, धूप धवल मुसकाई, प्रकृति मनोरम मुझको भाई।

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