सिंधु किनारे
सूरज गया, रात ने अपने पंख पसारे, निकल पड़े भीतर से बाहर नभ में तारे, हाहाकार समय करता है सिंधु किनारे, शील-भंग होता लहरों का बिना विचारे।

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