तुम आ गई...
तुम आ गई हो मेरे अस्तित्व में अपने अस्तित्व से निकल कर भरपूर बढ़ रहे अपने व्यक्तित्व के साथ जहाँ व्याप्त हूँ मैं वहाँ व्याप्त होने के लिए निरभ्र नीलिला के नीचे पृथ्वी के साथ प्रदक्षिणा करने के लिए त्रिकाल के साथ जप और जाप करने के लिए दृश्य और अदृश्य में श्रव्य और अश्रव्य में ज्ञेय और अज्ञेय होकर सर्वत्र विद्यमान रहने के लिए।

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