शमशेर-- मेरा दोस्त ! चलता चला जा रहा है अकेला कंधे पर लिए नदी, मूँड़ पर धरे नाव !...
झूठ नहीं सच होगा साथी! गढ़ने को जो चाहे गढ़ ले मढ़ने को जो चाहे मढ़ ले शासन के सौ रूप बदल ले...
यह जो मेरा अंतःकरण है मेरे शरीर के भीतर मैंने इसे युग और यथार्थ के परिप्रेक्ष्य में...
एक ही दफे नहीं- कई-कई दफे देखा है मैंने उसे। जब-जब देखा है मैंने उसे- लकदक लिबास में देखा है मैंने उसे।...
दाल-भात खाता है कौआ मनुष्य को खाता है हौआ नकटा है नेता धनखौआ न कटा हो मानो कनकौआ...
खिला है अग्निम प्रकाश संध्याकाश में; कमलबन की तरह नयनाभिराम, प्रवाल-पँखुरियों के सम्पुट खोले,...
उसे देखना न जाने किस ज्वार में बह जाने के समान है उसे भेंटना न जाने किस छंद में कस जाने के समान है...
पहला पानी गिरा गगन से उमँड़ा आतुर प्यार, हवा हुई, ठंढे दिमाग के जैसे खुले विचार। भीगी भूमि-भवानी, भीगी समय-सिंह की देह,...
देख ली है मैंने उसके ऎश्वर्य की प्रदर्शनी कि वह फीकी है अबोध शिशु की हँसी के सामने...