नेतृत्व का नायक
नेतृत्व का नायक कभी यहाँ, कभी वहाँ भटकता है, अपना सिर बुरी तरह पटकता है, झाड़ियों के मुँह में अटकता है, सत्य की आँख में खटकता है।

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