अपनी हथेलियों में
अपनी हथेलियों में अपने अस्तित्व के चावल लिए, चोंच मारती चिड़ियों को चुगाता है; दूसरों के लिए जीने का नाटक रचाता है। संस्कार-बद्ध आदमी, बस, यहीं तक जाता है; सम्पत्ति के जठर सम्बंध नहीं तोड़ पाता है, सुख-भोग नहीं छोड़ पाता है।

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