चन्द्र चमत्कृत
चन्द्र चमत्कृत दर्पण-देही चैत चाँदनी फगुआई है फूली है पाकर मोद-मही का अंक अशंक। रूप-रूप से परिप्लावित है, परिपूरित है प्रकृति प्रदेशी वेश। पेड़ खड़े हैं पवन प्रमोदित मुग्ध निरखते वाद्य-यंत्र से बजते। आकाशी अनुराग अनंगी व्याप गया, चहुँ ओर-अछोर मैं हूँ आत्म-विभोर।

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