मैं जिलाए और जगाए ही रहूँगा
मैं जिलाए औ’ जगाए ही रहूँगा देह का दुर्लभ दिया। चेतना से ज्योति की जीवंतता से तम यही तो हर रहा है- आंतरिक आलोक से भव भर रहा है सत्यदर्शी कर रहा है।

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