युग की गंगा
कविता अंश युग की गंगा पाषाणों पर दोडे़गी ही लम्बी , ऊंची सब प्राचीन डुबायेगी ही नयी बस्तियाँ शान्ति निकेतन नव संसार बसायेगी ही

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