प्रिय चिरंतन है सजनि, क्षण-क्षण नवीन सुहासिनी मै! श्वास में मुझको छिपाकर वह असीम विशाल चिर घन शून्य में जब छा गया उसकी सजीली साध-सा बन,...
मेरा सजल मुख देख लेते! यह करुण मुख देख लेता! सेतु शूलों का बना बाँधा विरह-वारीश का जल फूल की पलकें बनाकर प्यालियाँ बाँटा हलाहल!...
पूछता क्यों शेष कितनी रात ? अमर सम्पुट में ढला तू, छू नखों की कांति चिर संकेत पर जिन के जला तू, स्निग्ध सुधि जिन की लिये कज्जल-दिशा में हँस चला तू !...
मिल जाता काले अंजन में सन्ध्या की आँखों का राग, जब तारे फैला फैलाकर सूने में गिनता आकाश;...
मेरी चितवन खींच गगन के कितने रँग लाई ! शतरंगों के इन्द्रधनुष-सी स्मृति उर में छाई; राग-विरागों के दोनों तट मेरे प्राणों में, श्वासें छूतीं एक, अगर निःश्वासें छू आईं !...
तुम्हें बाँध पाती सपने में! तो चिरजीवन-प्यास बुझा लेती उस छोटे क्षण अपने में! पावस-घन सी उमड़ बिखरती,...
वे मधुदिन जिनकी स्मृतियों की धुँधली रेखायें खोईं, चमक उठेंगे इन्द्रधनुष से मेरे विस्मृति के घन में।...
रुपसि तेरा घन-केश पाश! श्यामल श्यामल कोमल कोमल, लहराता सुरभित केश-पाश! नभगंगा की रजत धार में, ...
श्रृंगार कर ले री सजनि! नव क्षीरनिधि की उर्म्मियों से रजत झीने मेघ सित, मृदु फेनमय मुक्तावली से...
किस सुधिवसन्त का सुमनतीर, कर गया मुग्ध मानस अधीर? वेदना गगन से रजतओस, चू चू भरती मन-कंज-कोष,...
थकीं पलकें सपनों पर ड़ाल व्यथा में सोता हो आकाश, छलकता जाता हो चुपचाप बादलों के उर से अवसाद;...
सब बुझे दीपक जला लूँ! घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ! क्षितिज-कारा तोड़ कर अब गा उठी उन्मत आँधी,...
रजतकरों की मृदुल तूलिका से ले तुहिन-बिन्दु सुकुमार, कलियों पर जब आँक रहा था करूण कथा अपनी संसार;...
निशा की, धो देता राकेश चाँदनी में जब अलकें खोल, कली से कहता था मधुमास बता दो मधुमदिरा का मोल;...
सिरमौर सा तुझको रचा था विश्व में करतार ने, आकृष्ट था सब को किया तेरे, मधुर व्यवहार ने।...
उर तिमिरमय घर तिमिरमय चल सजनि दीपक बार ले! राह में रो रो गये हैं रात और विहान तेरे...
फूलों का गीला सौरभ पी बेसुध सा हो मन्द समीर, भेद रहे हों नैश तिमिर को मेघों के बूँदों के तीर।...
धीरे धीरे उतर क्षितिज से आ वसन्त-रजनी! तारकमय नव वेणीबन्धन शीश-फूल कर शशि का नूतन,...
पुलक पुलक उर, सिहर सिहर तन, आज नयन आते क्यों भर-भर! सकुच सलज खिलती शेफाली, अलस मौलश्री डाली डाली;...
दीप मेरे जल अकम्पित, धुल अचंचल ! सिन्धु का उच्छ्वास घन है, तड़ित् तम का विकल मन है,...
घोर तम छाया चारों ओर घटायें घिर आईं घन घोर; वेग मारुत का है प्रतिकूल हिले जाते हैं पर्वत मूल;...
प्रिय-पथ के यह मुझे अति प्यारे ही हैं हीरक सी वह याद बनेगा जीवन सोना, जल जल तप तप किन्तु...
क्या तिमिर कह जाता करुण? क्या मधुर दे जाती किरण? किस प्रेममय दुख से हृदय में अश्रु में मिश्री घुली?...
प्रथम प्रणय की सुषमा सा यह कलियों की चितवन में कौन? कहता है ’मैंने सीखा उनकी- आँखो से सस्मित मौन’।...
निश्वासों का नीड़, निशा का बन जाता जब शयनागार, लुट जाते अभिराम छिन्न मुक्तावलियों के बन्दनवार,...
शून्य मन्दिर में बनूँगी आज मैं प्रतिमा तुम्हारी! अर्चना हों शूल भोले, क्षार दृग-जल अर्घ्य हो ले, आज करुणा-स्नात उजला...
क्यों वह प्रिय आता पार नहीं! शशि के दर्पण देख देख, मैंने सुलझाये तिमिर-केश; गूँथे चुन तारक-पारिजात,...
रे पपीहे पी कहाँ? खोजता तू इस क्षितिज से उस क्षितिज तक शून्य अम्बर, लघु परों से नाप सागर; नाप पाता प्राण मेरे...
जिसमें नहीं सुवास नहीं जो करता सौरभ का व्यापार, नहीं देख पाता जिसकी मुस्कानों को निष्ठुर संसार;...
प्रिय मेरे गीले नयन बनेंगे आरती! श्वासों में सपने कर गुम्फित, बन्दनवार वेदना- चर्चित, भर दुख से जीवन का घट नित,...
अश्रु मेरे माँगने जब नींद में वह पास आया! अश्रु मेरे माँगने जब नींद में वह पास आया!...
शलभ मैं शापमय वर हूँ! किसी का दीप निष्ठुर हूँ! ताज है जलती शिखा चिनगारियाँ श्रृंगारमाला;...
जो तुम आ जाते एक बार कितनी करूणा कितने संदेश पथ में बिछ जाते बन पराग गाता प्राणों का तार तार...
विरह की घडियाँ हुई अलि मधुर मधु की यामिनी सी! दूर के नक्षत्र लगते पुतलियों से पास प्रियतर, शून्य नभ की मूकता में गूँजता आह्वान का स्वर, आज है नि:सीमता...
हे मेरे चिर सुन्दर-अपने! भेज रही हूँ श्वासें क्षण क्षण, सुभग मिटा देंगी पथ से यह तेरे मृदु चरणों का अंकन ! खोज न पाऊँगी, निर्भय...