शून्य मन्दिर में बनूँगी
शून्य मन्दिर में बनूँगी आज मैं प्रतिमा तुम्हारी! अर्चना हों शूल भोले, क्षार दृग-जल अर्घ्य हो ले, आज करुणा-स्नात उजला दु:ख हो मेरा पुजारी! नूपुरों का मूक छूना, सरद कर दे विश्व सूना, यह अगम आकाश उतरे कम्पनी का हो भिखारी! लोल तारक भी अचंचल, चल न मेरी एक कुन्तल, अचल रोमों में समाई मुग्ध हो गति आज सारी! राग मद की दूर लाली, साध भी इसमें न पाली, शून्य चितवन में बसेगी मूक हो गाथा तुम्हारी!

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