आह्वान
फूलों का गीला सौरभ पी बेसुध सा हो मन्द समीर, भेद रहे हों नैश तिमिर को मेघों के बूँदों के तीर। नीलम-मन्दिर की हीरक— प्रतिमा सी हो चपला निस्पन्द, सजल इन्दुमणि से जुगनू बरसाते हों छबि का मकरन्द। बुदबुद को लड़ियों में गूंथा फैला श्यामल केश-कलाप, सेतु बांधती हो सरिता सुन— सुन चकवी का मूक विलाप। तब रहस्यमय चितवन से- छू चौंका देना मेरे प्राण, ज्यों असीम सागर करता है भूले नाविक का आह्वान।

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