आशा
वे मधुदिन जिनकी स्मृतियों की धुँधली रेखायें खोईं, चमक उठेंगे इन्द्रधनुष से मेरे विस्मृति के घन में। झंझा की पहली नीरवता— सी नीरव मेरी साधें, भर देंगी उन्माद प्रलय का मानस की लघु कम्पन में। सोते जो असंख्य बुदबुद से बेसुध सुख मेरे सुकुमार, फूट पड़ेंगे दुखसागर की सिहरी धीमी स्पन्दन में। मूक हुआ जो शिशिर-निशा में मेरे जीवन का संगीत, मधु-प्रभात में भर देगा वह अन्तहीन लय कण कण में।

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