मुरझाया फूल
था कली के रूप शैशव- में अहो सूखे सुमन, मुस्कराता था, खिलाती अंक में तुझको पवन ! खिल गया जब पूर्ण तू- मंजुल सुकोमल पुष्पवर, लुब्ध मधु के हेतु मँडराते लगे आने भ्रमर ! स्निग्ध किरणें चन्द्र की- तुझको हँसाती थीं सदा, रात तुझ पर वारती थी मोतियों की सम्पदा !

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