हे मेरे चिर सुन्दर-अपने!
हे मेरे चिर सुन्दर-अपने! भेज रही हूँ श्वासें क्षण क्षण, सुभग मिटा देंगी पथ से यह तेरे मृदु चरणों का अंकन ! खोज न पाऊँगी, निर्भय आओ जाओ बन चंचल सपने! गीले अंचल में धोया सा- राग लिए, मन खोज रहा कोलाहल में खोया खोया सा! मोम-हृदय जल के कण ले मचला है अंगारों में तपने! नुपुर-बन्धन में लघु मृदु पग, आदि अन्त के छोर मिलाकर वृत्त बन गया है मेरा मग! पाया कुछ पद-निक्षेपों में मधु सा मेरी साध मधुप ने! यह प्रतिपल तरणी बन आते, पार, कहीं होता तो यह दृग अगम समय सागर तर जाते! अन्तहीन चिर विरहमाप से आज चला लघु जीवन नपने!

Read Next