नये घन
लाये कौन सँदेश नये घन ! अम्बर गर्वित हो आया नत, चिर निस्पन्द हृदय में उसके उमड़े री पलकों के सावन ! लाये कौन सँदेश नये घन ! चौंकी निद्रित, रजनी अलसित श्यामल पुलकित कम्पित कर में दमक उठे विद्युत् के कंकण ! लाये कौन सँदेश नये घन ! दिशि का चंचल, परिमल- अंचल, छिन्न हार से बिखर पड़े सखि ! जुगनू के लघु हीरक के कण ! लाये कौन सँदेश नये घन ! जड़ जग स्पन्दित, निश्चल कम्पित, फूट पड़े अवनी के संचित सपने मृदुतम अंकुर बन बन ! लाये कौन सँदेश नये घन ! रोया चातक, सकुचाया पिक, मत्त मयूरों ने सूने में झड़ियों का दुहराया नर्तन ! लाये कौन सँदेश नये घन ! सुख-दुख से भर, आया लघु उर, मोती से उजले जलकण से छाये मेरे विस्मित लोचन ! लाये कौन सँदेश नये घन !

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