परिचय
जिसमें नहीं सुवास नहीं जो करता सौरभ का व्यापार, नहीं देख पाता जिसकी मुस्कानों को निष्ठुर संसार; जिसके आँसू नहीं माँगते मधुपों से करुणा की भीख, मदिरा का व्यवसाय नहीं जिसके प्राणों ने पाया सीख; मोती बरसे नहीं न जिसको छू पाया उन्मत्त बयार, देखी जिसने हाट न जिस पर ढुल जाता माली का प्यार; चढा न देवों के चरणों पर गूँथा गया न जिसका हार, जिसका जीवन बना न अबतक उन्मादों का स्वप्नागार। निर्जन वन के किसी अँधेरे कोने में छुपकर चुपचाप, स्वप्नलोक की मधुर कहानी कहता सुनता अपने आप। किसी अपरिचित डाली से गिरकर जो नीरस जंगली फूल; फिर पथ में बिछकर आँखों में चुपके से भर लेता धूल। उसी सुमन सा पलभर हँसकर सूने में हो छिन्न मलीन, झड़ जाने दो जीवन-माली! मुझको रहकर परिचयहीन!

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