मेरी साध
थकीं पलकें सपनों पर ड़ाल व्यथा में सोता हो आकाश, छलकता जाता हो चुपचाप बादलों के उर से अवसाद; वेदना की वीणा पर देव शून्य गाता हो नीरव राग, मिलाकर निश्वासों के तार गूँथती हो जब तारे रात; उन्हीं तारक फूलों में देव गूँथना मेरे पागल प्राण हठीले मेरे छोटे प्राण! किसी जीवन की मीठी याद लुटाता हो मतवाला प्रात, कली अलसायी आँखें खोल सुनाती हो सपने की बात; खोजते हों खोया उन्माद मन्द मलयानिल के उच्छवास, माँगती हो आँसू के बिन्दु मूक फूलों की सोती प्यास; पिला देना धीरे से देव उसे मेरे आँसू सुकुमार सजीले ये आँसू के हार! मचलते उद्गारों से खेल उलझते हों किरणों के जाल, किसी की छूकर ठंढी सांस सिहर जाती हों लहरें बाल; चकित सा सूने में संसार गिन रहा हो प्राणों के दाग, सुनहली प्याली में दिनमान किसी का पीता हो अनुराग; ढाल देना उसमें अनजान देव मेरा चिर संचित राग अरे यह मेरा मादक राग! मत्त हो स्वप्निल हाला ढाल महानिद्रा में पारावार, उसी की धड़कन में तूफान मिलाता हो अपनी झंकार; झकोरों से मोहक सन्देश कह रहा हो छाया का मौन, सुप्त आहों का दीन विषाद पूछता हो आता है कौन? बहा देना आकर चुपचाप तभी यह मेरा जीवन फूल सुभग मेरा मुरझाया फूल!

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