हरिजन सेती रूसणा, संसारी सूँ हेत । ते नर कदे न नीपजैं, ज्यूं कालर का खेत ॥1॥ भावार्थ - हरिजन से तो रूठना और संसारी लोगों के साथ प्रेम करना - ऐसों के अन्तर में भक्ति-भावना कभी उपज नहीं सकती, जैसे खारवाले खेत में कोई भी बीज उगता नहीं । मूरख संग न कीजिए, लोहा जलि न तिराइ ।...
का लै जैबौ, ससुर घर ऐबौ॥टेक॥ गाँव के लोग जब पूछन लगिहैं, तब तुम क रे बतैबी॥1॥ खोल घुँघट जब देखन लगिहैं, तब बहुतै सरमैबौ॥2॥ कहत कबीर सुनो भाई साधो, फिर सासर नहिं पैबौ॥3॥...
हंसा चलल ससुररिया रे, नैहरवा डोलम डोल॥टेक॥ ससुरा से पियवा चिठिया भेजायल, नैहरा भाय गेलै शोर। खाना-पीना मनहुँ न भावै, अँखियाँ से ढरकन लोर रे॥नै.॥ माई-बहिनियाँ फूटि-फूटि रोवे, सुगना उड़ि गेल मोर।...
सतगुर के सँग क्यों न गई री॥टेक॥ सतगुर के सँग जाती सोना बनि जाती, अब माटी के मैं मोल भई री॥1॥ सतगुर हैं मेरे प्रान-अधारा,...
साधो, देखो जग बौराना । साँची कही तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना । हिन्दू कहत,राम हमारा, मुसलमान रहमाना । आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना ।...
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥ जो सुख पाऊँ राम भजन में सो सुख नाहिं अमीरी में मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥...
जेता मीठा बोलणा, तेता साध न जाणि । पहली थाह दिखाइ करि, उंडै देसी आणि ॥1॥ उज्ज्वल देखि न धीजिये, बग ज्यूं मांडै ध्यान । धौरे बैठि चपेटसी, यूं ले बूड़ै ग्यान ॥2॥...
चेत करु जोगी, बिलैया मारै मटकी॥टेक॥ ब्रह्मा के मारै विष्णु के मारै। नारद बाबा के सभा बिच पटकी॥1॥ ज्ञानी के मारै ध्यानी के मारै।...
निरंजन धन तुम्हरो दरबार । जहाँ न तनिक न्याय विचार ।। रंगमहल में बसें मसखरे, पास तेरे सरदार । धूर-धूप में साधो विराजें, होये भवनिधि पार ।।...
करम गति टारै नाहिं टरी ॥ मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि । सीता हरन मरन दसरथ को, बनमें बिपति परी ॥ १॥ कहॅं वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहॅं वह मिरग चरी ।...
मुनियाँ पिंजड़ेवाली ना, तेरो सतगुरु है बेपारी॥टेक॥ पाँच तत्त का बना है पींजड़ा, तामें रहती मुनियाँ। उड़िके मुनियाँ डार पर बैठी, झींखन लागी सारी दुनिया॥1॥ अलग डाल पर बैठी मुनियाँ, पिये प्रेम रस बूटी।...
बहुरि नहिं आवना या देस ॥ जो जो गए बहुरि नहि आए, पठवत नाहिं सॅंस ॥ १॥ सुर नर मुनि अरु पीर औलिया, देवी देव गनेस ॥ २॥ धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस ॥ ३॥...
रहना नहिं देस बिराना है। यह संसार कागद की पुडिया, बूँद पडे गलि जाना है। यह संसार काँटे की बाडी, उलझ पुलझ मरि जाना है॥ यह संसार झाड और झाँखर आग लगे बरि जाना है।...
बीत गये दिन भजन बिना रे । भजन बिना रे, भजन बिना रे ॥ बाल अवस्था खेल गवांयो । जब यौवन तब मान घना रे ॥...
कबीर टुक टुक चोंगता, पल पल गयी बिहाय। जिन जंजाले पड़ि रहा, दियरा यमामा आय॥ जो उगै सो आथवै, फूले सो कुम्हिलाय। जो चुने सो ढ़हि पड़ै, जनमें सो मरि जाय॥...
`कबीर' माया पापणी, फंध ले बैठी हाटि। सब जग तौ फंधै पड्या,गया कबीरा काटि॥ `कबीर' माया मोहनी, जैसी मीठी खांड। सतगुरु की कृपा भई, नहीं तौ करती भांड॥...
साधु सती और सूरमा, इनका मता अगाध। आशा छाड़े देह की, तिनमें अधिका साध॥ साधु सती और सूरमा, कबहु न फेरे पीठ। तीनों निकासी बाहुरे, तिनका मुख नहीं दीठ॥...
मरूँ पर माँगू नहीं, अपने तन के काज। परमारथ के कारने, मोहिं न आवै लाज॥ सुख के संगी स्वारथी, दुःख में रहते दूर। कहैं कबीर परमारथी, दुःख - सुख सदा हजूर॥...
मोको कहां ढूढें तू बंदे मैं तो तेरे पास मे ना मैं बकरी ना मैं भेडी ना मैं छुरी गंडास मे नही खाल में नही पूंछ में ना हड्डी ना मांस मे ना मै देवल ना मै मसजिद ना काबे कैलाश मे...
कबीर मन मृतक भया, दुर्बल भया सरीर । तब पैंडे लागा हरि फिरै, कहत कबीर ,कबीर ॥ जीवन थैं मरिबो भलौ, जो मरि जानैं कोइ । मरनैं पहली जे मरै, तो कलि अजरावर होइ ॥...
परनारी राता फिरैं, चोरी बिढ़िता खाहिं। दिवस चारि सरसा रहै, अंति समूला जाहिं॥ परनारि का राचणौं, जिसी लहसण की खानि। खूणैं बैसि र खाइए, परगट होइ दिवानि॥...
`कबीर' भाठी कलाल की, बहुतक बैठे आइ। सिर सौंपे सोई पिवै, नहीं तौ पिया न जाई॥ `कबीर' हरि-रस यौं पिया, बाकी रही न थाकि। पाका कलस कुंभार का, बहुरि न चढ़ई चाकि॥...
नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार ॥ साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये । हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं । अंतरयामी एक तुम आतम के आधार ।...
भजो रे भैया राम गोविंद हरी । राम गोविंद हरी भजो रे भैया राम गोविंद हरी ॥ जप तप साधन नहिं कछु लागत, खरचत नहिं गठरी ॥ संतत संपत सुख के कारन, जासे भूल परी ॥...
सहज सहज सब कोई कहै, सहज न चीन्हैं कोय। जिन सहजै विषया तजै, सहज कहावै सोय॥ जो कछु आवै सहज में सोई मीठा जान। कड़वा लगै नीमसा, जामें ऐचातान॥...
मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया। पांच तत की बनी चुनरिया सोरह सौ बैद लाग किया। यह चुनरी मेरे मैके ते आयी...
संसारी से प्रीतड़ी, सरै न एको काम। दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम॥ स्वारथ का सब कोई सगा, सारा ही जग जान। बिन स्वारथ आदर करे, सो नर चतुर सुजान॥...
अंदेसड़ा न भाजिसी, संदेसौ कहियां। कै हरि आयां भाजिसी, कै हरि ही पास गयां॥1॥ यहु तन जालों मसि करों, लिखों राम का नाउं। लेखणिं करूं करंक की, लिखि-लिखि राम पठाउं॥2॥...
इहि उदर कै कारणे, जग जाच्यों निस जाम। स्वामीं-पणो जो सिरि चढ्यो, सर्यो न एको काम॥1॥ स्वामी हूवा सीतका, पैकाकार पचास। रामनाम कांठै रह्या, करै सिषां की आस॥2॥...
बैरागी बिरकत भला, गिरही चित्त उदार । दुहुं चूका रीता पड़ैं , वाकूं वार न पार ॥1॥ `कबीर' हरि के नाव सूं, प्रीति रहै इकतार । तो मुख तैं मोती झड़ैं, हीरे अन्त न फार ॥2॥...
`कबीर' नौबत आपणी, दिन दस लेहु बजाइ। ए पुर पाटन, ए गली, बहुरि न देखै आइ ॥1॥ जिनके नौबति बाजती, मैंगल बंधते बारि। एकै हरि के नाव बिन, गए जनम सब हारि ॥2॥...
जीवन में मरना भला, जो मरि जानै कोय। मरना पहिले जो मरै, अजय अमर सो होय॥ मैं जानूँ मन मरि गया, मरि के हुआ भूत। मूये पीछे उठि लगा, ऐसा मेरा पूत॥...
नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार॥ साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये। हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं। अंतरयामी एक तुम आतम के आधार।...
भजो रे भैया राम गोविंद हरी। राम गोविंद हरी भजो रे भैया राम गोविंद हरी॥ जप तप साधन नहिं कछु लागत खरचत नहिं गठरी॥ संतत संपत सुख के कारन जासे भूल परी॥...
जो सुख पाऊँ राम भजन में सो सुख नाहिं अमीरी में मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥ भला बुरा सब का सुनलीजै...
बहुरि नहिं आवना या देस॥ टेक॥ जो जो ग बहुरि नहि आ पठवत नाहिं सँस॥ १॥ सुर नर मुनि अरु पीर औलिया देवी देव गनेस॥ २॥ धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस॥ ३॥...
केहि समुझावौ सब जग अन्धा॥ टेक॥ इक दु होयँ उन्हैं समुझावौं सबहि भुलाने पेटके धन्धा। पानी घोड पवन असवरवा...