हंसा चलल ससुररिया रे, नैहरवा डोलम डोल
हंसा चलल ससुररिया रे, नैहरवा डोलम डोल॥टेक॥ ससुरा से पियवा चिठिया भेजायल, नैहरा भाय गेलै शोर। खाना-पीना मनहुँ न भावै, अँखियाँ से ढरकन लोर रे॥नै.॥ माई-बहिनियाँ फूटि-फूटि रोवे, सुगना उड़ि गेल मोर। लपकि-झपकि के तिरिया रोवे, जोड़ि बिछुड़ि गेल मोर रे॥नै.॥ काँचहिं बाँस के डोलिया बनावल, आखर मूँजा के डोरी। भाई भतीजा कसि-कसि बाँधे, जैसे नगरिया के चोर रे॥नै.। चार जने मिलि खाट उठाइन, लेने चले जमुना की ओर। सात बंधन के उकिया बनावल, मुख में दिहल अंगोर रे॥नै.॥ कहै कबीर सुनो भाई साधो, यह पद है निरबानी। जो कोई पद के अर्थ लगावे, पहुँचत मूल ठिकानी रे॥नै.॥

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