जीवन-मृतक का अंग
कबीर मन मृतक भया, दुर्बल भया सरीर । तब पैंडे लागा हरि फिरै, कहत कबीर ,कबीर ॥ जीवन थैं मरिबो भलौ, जो मरि जानैं कोइ । मरनैं पहली जे मरै, तो कलि अजरावर होइ ॥ आपा मेट्या हरि मिलै, हरि मेट्या सब जाइ । अकथ कहाणी प्रेम की, कह्यां न कोउ पत्याइ ॥ `कबीर' चेरा संत का, दासनि का परदास । कबीर ऐसैं होइ रह्या, ज्यूं पाऊँ तलि घास ॥ रोड़ा ह्वै रहो बाट का, तजि पाषंड अभिमान । ऐसा जे जन ह्वै रहै, ताहि मिलै भगवान ॥

Read Next