उठा के नाज़ से दामन भला किधर को चले इधर तो देखिए बहर-ए-ख़ुदा किधर को चले मिरी निगाहों में दोनों जहाँ हुए तारीक ये आप खोल के ज़ुल्फ़-ए-दोता किधर को चले...
फिर आई फ़स्ले गुल फिर जख़्मदह रह-रह के पकते हैं। मेरे दागे जिगर पर सूरते लाला लहकते हैं। नसीहत है अबस नासेह बयाँ नाहक ही बकते हैं। जो बहके दुख्तेरज से हैं वह कब इनसे बहकते हैं?...
ख़याले नावके मिजगाँ में बस हम सर पटकते हैं। हमारे दिल में मुद्दत से ये ख़ारे ग़म खटकते हैं। रुख़े रौशन पै उसके गेसुए शबगूँ लटकते हैं। कयामत है मुसाफ़िर रास्तः दिन को भटकते हैं।...
अजब जोबन है गुल पर आमदे फ़स्ले बहारी है। शिताब आ साकिया गुलरू कि तेरी यादगारी है। रिहा करता है सैयादे सितमगर मौसिमे गुल में। असीराने कफ़स लो तुमसे अब रुख़सत हमारी है।...
कहाँ करुणानिधि केशव सोये। जागत नेक न जदपि बहु बिधि भारतवासी रोए॥ इक दिन वह हो जब तुम छिन नहिं भारतहित बिसराए। इत के पशु गज को आरत लखि आतुर प्यादे धाए॥...
कैसी होरी खिलाई। आग तन-मन में लगाई॥ पानी की बूँदी से पिंड प्रकट कियो सुंदर रूप बनाई। पेट अधम के कारन मोहन घर-घर नाच नचाई॥...
मेरे नयना भये चकोर अनुदिन निरखत श्याम चन्द्रमा सुन्दर नंदकिशोर तनिक भये वियोग उर बाढ़त बहु बिधि नयन मरोर होत न पल की ओट छिनकहूँ रहत सदा दृग जोर...
वह अपनी नाथ दयालुता तुम्हें याद हो कि न याद हो वह जो कौल भक्तों से था किया तुम्हें याद हो कि न याद हो व जो गीध था गनिका व थी व जो व्याध था व मलाह था इन्हें तुमने ऊंचों की गति दिया तुम्हें याद हो कि न याद हो...
उठा के नाज़ से दामन भला किधर को चले। इधर तो देखिए बहरे ख़ुदा किधर को चले॥...
विक्तोरिया शाहेशाहान हिन्दोस्तान उसको शाहनशही हर बार मुबारक होवे। कैसरे हिन्द का दरबार मुबारक होवे। बाद मुद्दत के हैं देहली के फिरे दिन या रब।...
फ़सादे दुनिया मिटा चुके हैं हुसूले हस्ती उठा चुके हैं । खुदाई अपने में पा चुके हैं मुझे गले यह लगा चुके हैं ।।...
लिखाय नाहीं देत्यो पढ़ाय नाहीं देत्यो। सैयाँ फिरंगिन बनाय नाहीं देत्यो॥ लहँगा दुपट्टा नीको न लागै। मेमन का गाउन मँगाय नाहीं देत्यो।...
तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी ! इन चोरन मेरो सरबस लूट्यौ मन लीनो जोरा जोरी ! छोड़ि देई कि बंद चोलिया, पकरैं चोर हम अपनो री ! "हरीचन्द" इन दोउन मेरी, नाहक कीनी चितचोरी !...
न बोसा लेने देते हैं न लगते हैं गले मेरे अभी कम-उम्र हैं हर बात पर मुझ से झिजकते हैं...
मसल सच है बशर की क़दर नेमत ब'अद होती है सुना है आज तक हम को बहुत वो याद करते हैं...
फ़साद-ए-दुनिया मिटा चुके हैं हुसूल-ए-हस्ती मिटा चुके हैं ख़ुदाई अपने में पा चुके हैं मुझे गले ये लगा चुके हैं नहीं नज़ाकत से हम में ताक़त उठाएँ जो नाज़-ए-हूर-ए-जन्नत कि नाज़-ए-शमशीर-ए-पुर-नज़ाकत हम अपने सर पर उठा चुके हैं...
क़ब्र में राहत से सोए थे न था महशर का ख़ौफ़ बाज़ आए ऐ मसीहा हम तिरे एजाज़ से...
दिल मिरा तीर-ए-सितमगर का निशाना हो गया आफ़त-ए-जाँ मेरे हक़ में दिल लगाना हो गया हो गया लाग़र जो उस लैला-अदा के इश्क़ में मिस्ल-ए-मजनूँ हाल मेरा भी फ़साना हो गया...
बुत-ए-काफ़िर जो तू मुझ से ख़फ़ा हो नहीं कुछ ख़ौफ़ मेरा भी ख़ुदा है ये दर-पर्दा सितारों की सदा है गली-कूचा में गर कहिए बजा है...
दश्त-पैमाई का गर क़स्द मुकर्रर होगा हर सर-ए-ख़ार पए-आबला नश्तर होगा मय-कदे से तिरा दीवाना जो बाहर होगा एक में शीशा और इक हाथ में साग़र होगा...
मर गए हम पर न आए तुम ख़बर को ऐ सनम हौसला अब दिल का दिल ही में मिरी जाँ रह गया...
बैठे जो शाम से तिरे दर पे सहर हुई अफ़्सोस ऐ क़मर कि न मुतलक़ ख़बर हुई अरमान-ए-वस्ल यूँही रहा सो गए नसीब जब आँख खुल गई तो यकायक सहर हुई...
दिल आतिश-ए-हिज्राँ से जलाना नहीं अच्छा ऐ शोला-रुख़ो आग लगाना नहीं अच्छा किस गुल के तसव्वुर में है ऐ लाला जिगर-ख़ूँ ये दाग़ कलेजे पे उठाना नहीं अच्छा...
जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है। उसी का सब है जलवा जो जहाँ में आशकारा है॥...
ग़ज़ब है सुरमः देकर आज वह बाहर निकलते हैं। अभी से कुछ दिल मुज़्तर पर अपने तीर चलते हैं। ज़रा देखो तो ऐ अहले सखुन ज़ोरे सनाअत को। नई बंदिश है मजमूँ नूर के साँचें में ढलते हैं।...
किसी पहलू नहीं चैन आता है उश्शाक़ को तेरे तड़पते हैं फ़ुग़ाँ करते हैं और करवट बदलते हैं...
बाल बिखेरे आज परी तुर्बत पर मेरे आएगी मौत भी मेरी एक तमाशा आलम को दिखलाएगी महव-ए-अदा हो जाऊँगा गर वस्ल में वो शरमाएगी बार-ए-ख़ुदाया दिल की हसरत कैसे फिर बर आएगी...
अजब जौबन है गुल पर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है शिताब आ साक़िया गुल-रू कि तेरी यादगारी है रिहा करता है सय्याद-ए-सितमगर मौसम-ए-गुल में असीरान-ए-क़फ़स लो तुम से अब रुख़्सत हमारी है...
हो गया लाग़र जो उस लैला-अदा के इश्क़ में मिस्ल-ए-मजनूँ हाल मेरा भी फ़साना हो गया...
ग़ाफ़िल इतना हुस्न पे ग़र्रा ध्यान किधर है तौबा कर आख़िर इक दिन सूरत ये सब मिट्टी में मिल जाएगी...
बात करने में जो लब उस के हुए ज़ेर-ओ-ज़बर एक साअत में तह-ओ-बाला ज़माना हो गया...
रहे न एक भी बेदाद-गर सितम बाक़ी रुके न हाथ अभी तक है दम में दम बाक़ी उठा दुई का जो पर्दा हमारी आँखों से तो काबे में भी रहा बस वही सनम बाक़ी...
फिर आई फ़स्ल-ए-गुल फिर ज़ख़्म-ए-दिल रह रह के पकते हैं मगर दाग़-ए-जिगर पर सूरत-ए-लाला लहकते हैं नसीहत है अबस नासेह बयाँ नाहक़ ही बकते हैं जो बहके दुख़्त-ए-रज़ से हैं वो कब इन से बहकते हैं...
नींद आती ही नहीं धड़के की बस आवाज़ से तंग आया हूँ मैं इस पुर-सोज़ दिल के साज़ से दिल पिसा जाता है उन की चाल के अंदाज़ से हाथ में दामन लिए आते हैं वो किस नाज़ से...
फिर मुझे लिखना जो वस्फ़-ए-रू-ए-जानाँ हो गया वाजिब इस जा पर क़लम को सर झुकाना हो गया सर-कशी इतनी नहीं ज़ालिम है ओ ज़ुल्फ़-ए-सियह बस कि तारीक अपनी आँखों में ज़माना हो गया...
जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है उसी का सब है जल्वा जो जहाँ में आश्कारा है भला मख़्लूक़ ख़ालिक़ की सिफ़त समझे कहाँ क़ुदरत उसी से नेति नेति ऐ यार दीदों ने पुकारा है...