उठा के नाज़ से दामन भला किधर को चले
उठा के नाज़ से दामन भला किधर को चले इधर तो देखिए बहर-ए-ख़ुदा किधर को चले मिरी निगाहों में दोनों जहाँ हुए तारीक ये आप खोल के ज़ुल्फ़-ए-दोता किधर को चले अभी तो आए हो जल्दी कहाँ है जाने की उठो न पहलू से ठहरो ज़रा किधर को चले ख़फ़ा हो किस पे भंवें क्यूँ चढ़ी हैं ख़ैर तो है ये आप तेग़ पे धर कर जिला किधर को चले मुसाफ़िरान-ए-अदम कुछ कहो अज़ीज़ों से अभी तो बैठे थे है है भला किधर को चले चढ़ी हैं तेवरियाँ कुछ है मिज़ा भी जुम्बिश में ख़ुदा ही जाने ये तेग़-ए-अदा किधर को चले गया जो मैं कहीं भूले से उन के कूचे में तो हँस के कहने लगे हैं 'रसा' किधर को चले

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